Wednesday, November 9, 2022

आत्मचिंतन

 बहुत दिनों के बाद आज कुछ लिखने के लिए  बैठा हु, सोच रहा हु कहा से शुरू करू.

बहुत बाते हे  जो किसी को कह भी नहीं पाते किसी को बता नहीं सकते फिर वो बिना किसी समाधान बिना किसी निष्कर्ष के यही अंतस में दबी रह जाती है ,

पिछले कुछ महीनो से समय का पहिया मेरे  भाग्य रुपी वाहन को अपने लक्ष्य रूपी पथ पर अभाव रूपी बाधाओं को पार नहीं करवा पा रहे हे , परिणाम स्वरुप तय गंतव्य अपने समय के साथ अव्यवस्थित होते जा रहे हे ,

जीवन में निराशा कब  अपनी  काली घनी परछाई के साथ एक लम्बी अवधि के लिए मेहमान बन जाये ये चिंता अब दिन रात सताने लगी है ,

सपने कैसे चकना चूर होते हे,   कैसे इच्छाओ का मर्दन होता हे,  कैसे अकांक्षाओ के पंख उडान भरने से पहले ही कट जाते हे  ये सब वर्तमान मुझे दिखा रहा हे.. 

आखिर कब तक इस  परिस्थिति से लड़ पाउँगा कब तक ये हालात बने रहेंगे कुछ समज में नहीं आरहा  हे। 

हफ्तों हफ्तों तक खाली हाथ घर जाना , ऋण का भार बढ़ता जाना , लेनदारों की उगाही और घर में ख़त्म होते राशन माँ बाप की दवाई ये सब एक दैत्य की तरह सामने खड़े होकर मुझे ललकारते हे। 

पता नहीं आखिर ऐसा हुआ क्यों हे? व्यवसाय धीरे धीरे ठप्प सा क्यों हो गया , क्यों कोई ग्राहक आखिर मेरे यहाँ आना ही नहीं चाहता, क्यों मेरी क्रय और विक्रय की क्षमता पर प्रश्न चिन्ह लग रहा हे , लगभग सभी निर्णय उलटे पड रहे हे? कुछ समझ  में नहीं आरहा हे और सिवाय पत्नी के  जो सिर्फ सीमित एवं मर्यादित क्षमता से मेरी सहायक हे उसके सिवा और  कोई मार्गदर्शक भी जीवन में नहीं हे, कोई हाथ पकड़ के दुविधा और दुर्दशा के दल दल से निकालने वाला भी नहीं हे , 

अंतोगत्वा ईश्वर ही हे जो ये सब देख रहे है और समझ रहे है। हे ईश्वर मेरी रक्षा करना। 


Tuesday, December 7, 2021

हरि का परिचय

 हरि, मेरी लघु कथाओं का एक पात्र या नायक जो कि एक साधारण परिवार का घर गृहस्ती वाला एक जिम्मेदार नागरिक है| दरअसल हरि एक प्रतिनिधि है उन सभी मनुष्यों का जो अपने प्रतिदिन के क्रियाकलापों एवं उलझनों मैं संघर्ष करते हुए जीवन को एक प्रासंगिक एवं सकारात्मक दृष्टिकोण देने का प्रयास करते रहते हैं|

हरि के घर में उसके मां-बाप, पत्नी, एक बेटा एवं एक बेटी है. 

हरि के जीवन में घटने वाली छोटी-मोटी घटनाओं के प्रसंग मेरी लघु कथाओं का आधार है|

Life truth..

 जीवन में जो लोग साथ रहकर छल करें, धोखा दे,चुगली करें, बातों को गलत तरीक़े से किसी के सामने रखे,उनका साथ छोड़ देना  बेहतर होता है....Hari

Tuesday, September 22, 2015

प्रभु शरण ...

सिवाय भगवान के हरी के पास अब कोई चारा नहीं की जहा अपनी व्यथा को कह सके .दिन प्रति दिन परिस्तिथि प्रतिकुल होती जा रही हे .जब भी उबरने का प्रयास करता हे एक नया भंवर उसको घेर लेता हे .इस संघर्ष  से अब उसका धेर्य जवाब देने लगा हे और कोई भी नहीं हे जो उसका हाथ थाम के उसको इस विषमता से बहार निकाल ले ..कभी कभी हरी के मन में कायरता वाले विचार भी आने लगते हे की ऐसा  हारे हुए खिलाडी का जीवन कब तक जियेगा .क्यों ना सब को उनके हाल पर छोड़ कर इस संघर्ष को यही विराम देदे .लेकिन जब वो इसके परिणाम की कल्पना करता हे तो सिहर जाता हे , उसके रोंगटे खड़े हो जाते हे ..क्या होगा सबका! उनका संघर्ष कितना कठिन होजायेगा ..हालाँकि संसार गतिमान हे, किसी के जाने से समय थम नहीं जाता..लेकिन उसके अपराध की सजा बाकि लोगो को भुगतनी पड़ेगी ...फिर हरी प्रण करता हे की वो प्रभु की शरण में जाने से पहले ये सुनिश्चित जरुर कर लेगा की पीछे किसी को कोई पीड़ा न हो..प्रभु हरी को इतना सामर्थ्य तो देदे की बिना निमन्त्रण के आपके द्वार आने का विचार न करे ....HARI

Wednesday, July 15, 2015

दुविधा (भाग २)

कई बार सोचता हु की जो अभी हे उस पर खुश रहू क्यों की ये भी मेरी कल्पनाओ से अधिक ही हे .लेकिन जब वास्तविक परिस्तिथियों से दो चार होता हु , तो कितना 'असहाय' हु. ये ज्ञात होता हे.
हर व्यक्ति के सुख और दुःख के अलग अलग मायने होते हे . कभी किसी से तुलना हो भी नहीं सकती|
अभावग्रस्त बचपन और रुचि विहीन लाचार परिस्तिथियो   ने जीवन में कई अकांक्षाओ और जिज्ञासाओ को उभरने ही नहीं दिया .मगर महत्वाकांक्षा  कही छुपी हुई  सिसकते हुए परछाई तले साथ चल रही थी | समय ने महत्वकांक्षा को भी प्राण वायु दिया और जीवन की आवश्यकताओ ने कर्म के मार्ग पर धकेला. लेकिन वो गति कभी मिल नहीं पाई की अभावो के अँधेरे को चांदनी रात की रौशनी दे सकू .हमेशा तारो की चंद किरणों में यात्रा अनवरत जारी रही .
दुविधा यही हे की मैं कभी ये तय नहीं कर पाया की मुझे जाना कहा हे .
हर बार किसी पड़ाव पर सहयात्री भी मिले कुछ कदम साथ भी चले मगर पता नहीं क्यों फिर साथ छोड़ गए कभी किसी ने कारण नहीं बताया. मुझमें क्या कमी थी या मेरे किस कदम से असहमत थे कभी नहीं बताया. ये मेरे लिए आज तक रहस्य ही हे की में अकेला क्यों हु . 
हो सकता हे कही मैं उनपर बोज बन गया हु या मेरी वाणी असहनीय हो गयी हो या मेरा कद उनको छोटा लगने लगा हो परन्तु कह तो सकते ही थे...मैं अभी तक अपनी उस कमी को खोज रहा हु.
क्या दुनिया में ऐसा कोई दर्पण हे जो आपको आपकी सीमाओ का ज्ञान करा दे..और अगर किसी दर्पण से वो ज्ञान हो भी गया तब क्या मैं स्वीकार्य हो जाऊंगा ?.यही दुविधा हे .. ......Hari

Monday, November 18, 2013

अग्नि परीक्षा

हरी ..आज  बहुत बेचैन होकर आपनेभविष्य के बारे में सोच रहा हे .कैसे पुरे करेगा उन सपनो को जो वो सब देख रहे हे क्या होगा कल जब जिम्मेदारिया सिरपर  खड़ी होंगी .बेटी बड़ी हो रही हे ,उसकी पढ़ाई लिखाई और फिर उसके भावी जीवन की योजनाओ की पूर्ति ..बेटा जो अपनी समस्याओ से झुज़ रहा हे .उसको उसकी क्षमता से ज्यादा भार देकर उसका वर्तमान ही चौपट किया जा चूका हे .अब उसको भी जीवन के पथ पर चलने में हर समय मार्गदर्शन की आवश्यकता रहेगी ,हरी अपनी सीमित व्यवस्था में यही सब सोचता हुआ रोने का भी प्रयास करता हे .मगर उसके आंसू किसीको नहीं दिखने वाले ,यही उसकी नियति हे .इसीलिए आँखों ने आंसू भी सुखा लिए हे
.
मगर यात्रा अनवरत जारी हे ......

Saturday, September 8, 2012

दुविधा

हरी आज कुछ उदास उदास सा निकला घर से , बस अपने में खोया खोया कुछ सोचता हुआ जा रहा था ,
अब वो किसी को कह भी तो नहीं सकता की उसके मन में क्या चल रहा हे ,क्यूं की जिनसे वो कह सकता हे वो ही पहले से अपनी अपनी इच्छाये जता चुके हे. माँ पिताजी को अपने  धार्मिक कार्यक्रम और तीर्थ  यात्राए करनी हे, बेटे और बेटी को स्कूल के भार मुक्ति नहीं हे ,पत्नी को हर महीने तय रकम हर हालत में चाहिए ! 
माँ पिताजी के आदेश की पालना करने में कुछ संकोच हो गया या कुछ असहमति प्रकट करदी तो कपूत होने का प्रमाण पत्र मिलने में क्षण भर की देर भी नहीं लगती ..पत्नी को कुछ समय रुकने को कह दो तो निठल्ले और स्वार्थी पति घोषित ! 
कभी कोई उससे ये नहीं पूछता की तेरा काम केसा चल रहा हे , कोई समस्या तो नहीं हे, कोई सहयोग की आवश्यकता तो नहीं ...!
हरी इसी उधेड़ बुन में दूकान पहुछ्ता हे ..
आज तो कर्मचारियों को भी पगार देनी हे , मांगने वाले का भी फ़ोन आरहा हे उसका भी भुगतान करना हे .देने वाला कोन कोन हे उनसे संपर्क करने पर जवाब मिलता हे की आज तो बहार गए हुए हे ,आज पैसा नहीं आया ,पहले नया माल भेजो फिर पुराना बकाया देता हु , माल अच्छा नहीं भेजा वो बिका नहीं हे ,
बस यही दिनचर्या में जीवन की गाड़ी अपनी रफ़्तार से चल रही हे .....हरी का जन्म शायद ऐसे  ही जीवन के लिए हुआ हे !......
माँ पिताजी के स्नेह की पूर्ति और पत्नी के निस्वार्थ समर्पण की अपेक्षा में वो घर से बाहर घर के चेहरे की इच्छा लिए उन क्षणों की प्रतीक्षा ही करता हे ....यात्रा अनवरत जारी हे ....!