बहुत दिनों के बाद आज कुछ लिखने के लिए बैठा हु, सोच रहा हु कहा से शुरू करू.
बहुत बाते हे जो किसी को कह भी नहीं पाते किसी को बता नहीं सकते फिर वो बिना किसी समाधान बिना किसी निष्कर्ष के यही अंतस में दबी रह जाती है ,
पिछले कुछ महीनो से समय का पहिया मेरे भाग्य रुपी वाहन को अपने लक्ष्य रूपी पथ पर अभाव रूपी बाधाओं को पार नहीं करवा पा रहे हे , परिणाम स्वरुप तय गंतव्य अपने समय के साथ अव्यवस्थित होते जा रहे हे ,
जीवन में निराशा कब अपनी काली घनी परछाई के साथ एक लम्बी अवधि के लिए मेहमान बन जाये ये चिंता अब दिन रात सताने लगी है ,
सपने कैसे चकना चूर होते हे, कैसे इच्छाओ का मर्दन होता हे, कैसे अकांक्षाओ के पंख उडान भरने से पहले ही कट जाते हे ये सब वर्तमान मुझे दिखा रहा हे..
आखिर कब तक इस परिस्थिति से लड़ पाउँगा कब तक ये हालात बने रहेंगे कुछ समज में नहीं आरहा हे।
हफ्तों हफ्तों तक खाली हाथ घर जाना , ऋण का भार बढ़ता जाना , लेनदारों की उगाही और घर में ख़त्म होते राशन माँ बाप की दवाई ये सब एक दैत्य की तरह सामने खड़े होकर मुझे ललकारते हे।
पता नहीं आखिर ऐसा हुआ क्यों हे? व्यवसाय धीरे धीरे ठप्प सा क्यों हो गया , क्यों कोई ग्राहक आखिर मेरे यहाँ आना ही नहीं चाहता, क्यों मेरी क्रय और विक्रय की क्षमता पर प्रश्न चिन्ह लग रहा हे , लगभग सभी निर्णय उलटे पड रहे हे? कुछ समझ में नहीं आरहा हे और सिवाय पत्नी के जो सिर्फ सीमित एवं मर्यादित क्षमता से मेरी सहायक हे उसके सिवा और कोई मार्गदर्शक भी जीवन में नहीं हे, कोई हाथ पकड़ के दुविधा और दुर्दशा के दल दल से निकालने वाला भी नहीं हे ,
अंतोगत्वा ईश्वर ही हे जो ये सब देख रहे है और समझ रहे है। हे ईश्वर मेरी रक्षा करना।