हरि जब अपनी आयु 40 वर्ष के आसपास से गुजर रहा था तब उसके अंतर्मन में कई सपने आकार ले रहे थे, बेटे को लेकर वह यह निश्चय तो कर चुका था की बेटे का अध्ययन में कोई विशेष रुचि नहीं है तो वह व्यापार में उसका साथ देगा, और अपनी बेटी को वह उसकी इच्छा के अनुसार उच्च अध्ययन कराएगा ताकि वह आत्मनिर्भर होकर अपना भविष्य सवार सके, शनै शनै हरि उम्रके अर्धशतक की ओर अग्रसर हो रहा था और उसके सभी सपने एक-एक करके रसातल में जा रहे थे, बेटा उसकी आशा के अनुरूप व्यवसाय को आगे नहीं लेजा पाया और बेटी भी कुछ प्रयासों के पश्चात हताशा के भंवर में उलझ गई, अब हरि अपने जीवन के उसे ठहराव पर है जहां से अंधकार भी नजर आ रहा है और दूर क्षितिज में कहीं कुछ रोशनी की एक किरण भी दिखाई दे रही है, हरि के जीवन में यह ठहराव कब तक रहता है बस अब यही एक वह जीवन बिंदु है जहां से हरि अपने भावी जीवन की रपरेखा तय कर पाएगा,,,
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