हरी आज कुछ उदास उदास सा निकला घर से , बस अपने में खोया खोया कुछ सोचता हुआ जा रहा था ,
अब वो किसी को कह भी तो नहीं सकता की उसके मन में क्या चल रहा हे ,क्यूं की जिनसे वो कह सकता हे वो ही पहले से अपनी अपनी इच्छाये जता चुके हे. माँ पिताजी को अपने धार्मिक कार्यक्रम और तीर्थ यात्राए करनी हे, बेटे और बेटी को स्कूल के भार मुक्ति नहीं हे ,पत्नी को हर महीने तय रकम हर हालत में चाहिए !
माँ पिताजी के आदेश की पालना करने में कुछ संकोच हो गया या कुछ असहमति प्रकट करदी तो कपूत होने का प्रमाण पत्र मिलने में क्षण भर की देर भी नहीं लगती ..पत्नी को कुछ समय रुकने को कह दो तो निठल्ले और स्वार्थी पति घोषित !
कभी कोई उससे ये नहीं पूछता की तेरा काम केसा चल रहा हे , कोई समस्या तो नहीं हे, कोई सहयोग की आवश्यकता तो नहीं ...!
हरी इसी उधेड़ बुन में दूकान पहुछ्ता हे ..
आज तो कर्मचारियों को भी पगार देनी हे , मांगने वाले का भी फ़ोन आरहा हे उसका भी भुगतान करना हे .देने वाला कोन कोन हे उनसे संपर्क करने पर जवाब मिलता हे की आज तो बहार गए हुए हे ,आज पैसा नहीं आया ,पहले नया माल भेजो फिर पुराना बकाया देता हु , माल अच्छा नहीं भेजा वो बिका नहीं हे ,
बस यही दिनचर्या में जीवन की गाड़ी अपनी रफ़्तार से चल रही हे .....हरी का जन्म शायद ऐसे ही जीवन के लिए हुआ हे !......
माँ पिताजी के स्नेह की पूर्ति और पत्नी के निस्वार्थ समर्पण की अपेक्षा में वो घर से बाहर घर के चेहरे की इच्छा लिए उन क्षणों की प्रतीक्षा ही करता हे ....यात्रा अनवरत जारी हे ....!
कृपया अपनी राय दे की हरी को अपने जीवन में क्या करना चाहिए की उसकी दुविधा कम हो जाये !
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