सिवाय भगवान के हरी के पास अब कोई चारा नहीं की जहा अपनी व्यथा को कह सके .दिन प्रति दिन परिस्तिथि प्रतिकुल होती जा रही हे .जब भी उबरने का प्रयास करता हे एक नया भंवर उसको घेर लेता हे .इस संघर्ष से अब उसका धेर्य जवाब देने लगा हे और कोई भी नहीं हे जो उसका हाथ थाम के उसको इस विषमता से बहार निकाल ले ..कभी कभी हरी के मन में कायरता वाले विचार भी आने लगते हे की ऐसा हारे हुए खिलाडी का जीवन कब तक जियेगा .क्यों ना सब को उनके हाल पर छोड़ कर इस संघर्ष को यही विराम देदे .लेकिन जब वो इसके परिणाम की कल्पना करता हे तो सिहर जाता हे , उसके रोंगटे खड़े हो जाते हे ..क्या होगा सबका! उनका संघर्ष कितना कठिन होजायेगा ..हालाँकि संसार गतिमान हे, किसी के जाने से समय थम नहीं जाता..लेकिन उसके अपराध की सजा बाकि लोगो को भुगतनी पड़ेगी ...फिर हरी प्रण करता हे की वो प्रभु की शरण में जाने से पहले ये सुनिश्चित जरुर कर लेगा की पीछे किसी को कोई पीड़ा न हो..प्रभु हरी को इतना सामर्थ्य तो देदे की बिना निमन्त्रण के आपके द्वार आने का विचार न करे ....HARI
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
No comments:
Post a Comment